बस कुछ समय शेष था मुझे पता चला कि 8:00 तक के निर्धारित समय तक रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन करना है । 8:00 बजे से बस 2 मिनट का समय बाकी था और मैंने अपना रजिस्ट्रेशन पूर्ण किया । मेरी एक सहेली ने संचालकों में से एक को कॉल करके पूछा परंतु सिट पूर्णता फूल हो चुकी थी । फिर इसके पश्चात मैं हॉस्टल की सीनियर से संपर्क किया विनती की और अगले आधे घंटे के अंदर मुझे कॉल आया और इस प्रकार मुझे सेवांकुर में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ
। 15 अगस्त 2023 की सुबह हुई । तैयारी सुबह से शुरू हुई खिड़की से वह लहराता तिरंगा मन में उल्हास लेकर हम सब ने प्रवास शुरू किया । यह मेरा सेवांकुर का पहला अनुभव था ।
हम सब ने अपनी अपनी स्थान ग्रहण की और प्रवासी शुरू । वैसे तो कुछ देर बाद बोर हो रहा था । कुछ मोबाइल देख रहे थे, कुछ कानों में हेडफोन डाले कुछ सुन रहे थे और मैं सो रही थी । इस वक्त डॉक्टर बोधनकर सर का ध्यान मुझ पर गया और उन्होंने आवाज दी हम सोने नहीं आए हैं । और इस तरह फिर से उन्होंने गाना शुरू किया जो सबने मिलकर गया बहुत मजा आया । कुछ समय पश्चात हम परतवाड़ा पहुंचे और एक स्कूल में शिवकालीन शस्त्र प्रदर्शनी का आनंद लिया । जानकारी ली फिर भाग्य वश वहां एक कवि से भेंट हुई और अप्रतिम कविता का आनंद लेने का मौका मिला । फिर सफर शुरू हुआ सब ने मिलकर जो कुछ लाया था मिल बैठकर खाया चॉकलेट्स मिले ।
हमने प्रवेश किया पहाड़ियों एवं जंगलों के क्षेत्र में । बच्चों के स्नैप और वीडियो फोटोस लेना शुरू हुआ सब इस खोज में खिड़कियों से बाहर देख रहे थे कि कुछ दिख जाए । हम एक जगह रुक नाश्ता किया वक्त लगभग तीन साढे तीन हो चुका था बारिश शुरू हुई बहुत सारे फोटो लिए । बहुत मजा किया फिर सिपना नदी भ्रमण पर गए उस प्राकृतिक सौंदर्यता को आंखों में जितना सम सके उतना कम था । सबका नदी में जाना पत्थरों पर बैठना । तभी मेरी एक सहेली धब से गिरी । गिरने का जितना गम नहीं उससे ज्यादा मुझे किसी ने देखा तो नहीं कहा था । वहां से फिर हम जाटू बाबा के मंदिर में गए जो वहां के आदिवासीयों के देवता थे । जानकारी प्राप्त हुई कैसे उन्होंने भारतीय परंपरा को बचाए रखने के लिए धर्म परिवर्तन के खिलाफ ख्रिश्चन मिशनरी के खिलाफ अपने जीवन का बलिदान दिया ।
इसके उपरांत हम धारनी गए । वहां के हरिगोविंद छात्रावास गए । वहां ध्वजारोहण देखा वहां पर छोटे-छोटे बच्चों को बड़े ही अनुशासित देखकर मन में अच्छा लगा । उन्होंने हमारे नाश्ते का प्रबंध किया । जिन बच्चों को पढ़ने की लगन है पर गरीब है या दूर गांव में रहते हैं उनके लिए समाज की तरफ से वह छात्रावास का प्रबंध था ।
वक्त इतना हो चुका था और भूख तो पूछो मत । सब इसी इंतजार में थे कि निवास स्थान कब पहुंचेंगे फिर आखिरकार 9:00 बजे के आसपास हम ग्रामज्ञानपीठ पहुंचे । पूरा सुनसान रास्ता । कहीं दूर-दूर तक घर नजर नहीं आ रहे थे, नहीं कोई रोशनी । किसी तरह सब नीचे उतरे सबने अपना मोबाइल टॉर्च लगाया और दिखाएं मार्ग पर पीछे-पीछे चल रहे ।
हाशशश...
आखिर में पहुंच ही गए । अनुमान से अधिक अच्छी सुविधा थी रहने की । सब ताजा होकर बाहर आए खाना खाने के लिए कक्षा में प्रवेश किया इतनी सुंदर व्यवस्था लगी, गांव आए हैं । वह मिट्टी से बना डाइनिंग टेबल हमारा सब कुछ पुरानी परंपरा जैसा । एकदम बहुत अच्छा लगा । बस पेट में कुछ जाने की दे रही थी फिर क्या नहीं किसी को भी नींद नहीं आ रही थी, नहीं थकावट महसूस हुई । महफिल जमी, सब एक साथ बैठकर अंताक्षरी खेलने लगे वह बहुत ही हसीन पल था । सबने गाना गया मिलकर एक ने कहा सबने मिलकर दोहराया । खीर का खाना जिससे पेट ही नहीं भर रहा था और रिश्तो की लंबी कविता जो हमारी बुद्धि को जांच रही थी ।
और इस तरह से पहले दिन सबके साथ इतना यादगार रहा ।
16 अगस्त की सुबह हुई उठने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा था फिर भी किसी तरह उठे । योगासन प्रारंभ हुआ सबको देख ऐसा लग रहा था जीवन में पहली बार कर रहे हो । मजा और आतुरता बस शवासन करने की थी ।
सिपना नदी दिन का दूसरा कार्य शुरू हुआ । भ्रमण पर गए वह बच्चों का फिर से फोटोस वीडियो निकालना शुरू । पानी के भीतर जाकर खेलना रिली बनाना सब कुछ बस इतना मनमोहक था । वापस अवकाश स्थान पर आए नहाना तैयार होना था । फिर नाश्ता और उसके बाद हम पहले बांबू प्रकल्प देखने गए मुल रहिवासियों की रोजगारी वही थी । वह हस्तकलाओं का प्रदर्शन देखा दिल को बहुत ही तसल्ली मिली कि अभी भी हस्तकलाओं का प्रभाव जीवित है । सब कुछ बंबू का बना हुआ था बड़े-बड़े घरों से लेकर छोटी-छोटी राखियां झुमके खिलौने आदि ।
वहां से समूह में बच्चे नजदीकी गांव में गए लोगों की दिनचर्या का रहना खाना पीना बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था गर्भवती महिलाओं के लिए सुविधा स्वास्थ्य, संबंधित सभी का हमने सर्वे किया यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि लोग अपने जंगलों एवं मुख्य बांबू कार्य से जीवन निर्वाह करते है ।
हम फिर से ग्राम ज्ञानपीठ पधारे वहां खाना खाया और उसकी देखरेख संपूर्ण ज्ञानपीठ को चलने वाली महिला निरुपमाताई देशपांडे से वार्तालाप हुई । किस तरह एक शहरों में पली लड़की एक वनवासी गांव में आकर अपना पूरा जीवन समर्पण किया । वह सच में हम सबके लिए प्रेरणा थी ।
ऐसे हमने वहां से अलविदा ली और घर वापसी के लिए प्रस्थान किया
। एक स्थल कोलखास जंगल का भ्रमण रह गया था बड़ी जबरदस्ती करके और समय का ध्यान रखते हुए हमने उसका भी लाभ उठाया । वह नया हमने हाथी दिखा मोर देखा इस तरह हमारा सेवांकुर का यह मेरा पहला अनुभव बहुत ही मनमोहक रहा ।
बहुत जानकारी अनुभव और प्राकृतिक सौंदर्य की प्राप्ति हुई । आगे भी ऐसे अनुभवों के लिए बहुत आतुरता से इंतजार रहेगा.
संपदा पाटील